उधम सिंह जीवन परिचय | Shaheed Udham Singh Wikipedia in hindi

उधम सिंह जीवन परिचय: Shaheed Udham Singh Wikipedia in hindi

उधम सिंह की जीवनी ,उधम सिंह कौन थे, जाति, कहानी, मृत्यु कैसे हुई, शहीद दिवस, धर्म, परिवार, फिल्म (Shaheed Udham Singh Biography in hindi) [Biopic Movie, Vicky Kaushal, Caste, Religion, Kaun the, Story, Death, Shahid Diwas, Family]

उधम सिंह एक क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी थे. उधम सिंह के दिल में सिर्फ और सिर्फ देश प्रेम की भावना और अंग्रेजों के प्रति अगम्य क्रोध भरा हुआ था. इन्होंने प्रतिशोध की भावना के फलस्वरुप पंजाब के पूर्व राज्यपाल माइकल ओ ड्वायर की हत्या कर दी थी. उधम सिंह 13 अप्रैल 1919 के दिन ,दिल दहला देने वाली घटना में करीब 1000 से अधिक निर्दोष लोगों की शव यात्रा देख ली थी. तभी से उनको गहरा आघात हुआ और उनके अंदर आक्रोश की भावना जागृत हो गई.
उधम सिंह ने अपने निर्देश देशवासियों की मौत का बदला लेने के लिए संकल्प कर लिया. उन्होंने अपने संकल्प को अंजाम दिया फिर उसके बाद वह शहीद -ए -आजम सरदार उधम सिंह के नाम से भारत सहित विदेशों में भी प्रसिद्ध हो गए. आइए जानते हैं, इस महान क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी के बारे में.

उधम सिंह का जन्म, परिवार एवं प्रारंभिक जीवन (Udham Singh Early Life)

उधम सिंह जी का जन्म 26 दिसंबर 1899 में पंजाब के संगरूर जिले में हुआ था, और उनको उस समय लोग शेर सिंह के नाम से जाना करते थे. उनके पिता सरदार तेहाल सिंह जम्मू उपली गांव के रेलवे क्रॉसिंग में वॉचमैन का काम किया करते थे. उनकी माता नारायण कौर उर्फ नरेन कौर एक गृहणी थी. जो अपने दोनों बच्चों उधम सिंह और मुक्ता सिंह की देखभाल भी किया करती थी.

परंतु दुर्भाग्यवश दोनों भाइयों के सिर से माता पिता का साया शीघ्र ही हट गया था. उनके पिताजी की मृत्यु 1901 में और पिता की मृत्यु के 6 वर्ष बाद इनकी माता की भी मृत्यु हो गई. ऐसी दुखद परिस्थिति में दोनों भाइयों को अमृतसर के खालसा अनाथालय में आगे का जीवन व्यतीत करने के लिए और शिक्षा दीक्षा लेने के लिए इस अनाथालय में उनको शरण लेनी पड़ी थी.

परंतु दुर्भाग्यवश उधम सिंह के भाई का भी साथ ज्यादा समय तक नहीं रहा उनकी भाई की मृत्यु 1917 में ही हो गई थी. अब उधम सिंह पंजाब में तीव्र राजनीति में मची उथल-पुथल के बीच अकेले रह गए थे. उधम सिंह हो रही इन सभी गतिविधियों से अच्छी तरह से रूबरू थे. उधम सिंह ने 1918 में अपनी मैट्रिक की पढ़ाई पूरी कर ली. इसके बाद उन्होंने 1919 में खालसा अनाथालय को छोड़ दिया. अनाथालय में, सिंह को सिख दीक्षा संस्कार दिया गया और उधम सिंह का नाम प्राप्त किया।

उधम सिंह जी की विचारधारा

शहीद भगत सिंह द्वारा किए गए अपने देश के प्रति क्रांतिकारी कार्य और उनके समूहों से उधम सिंह बहुत ही प्रभावित हुए थे.1935 में जब उधम सिंह कश्मीर में थे तब उनको शहीद भगत सिंह के तस्वीर के साथ पकड़ा गया था. उस दौरान उधम सिंह जी को शहीद भगत सिंह जी का सहयोगी मान लिया गया और इसके साथ ही शहीद भगत सिंह का शिष्य उधम सिंह को भी मान लिया गया था. उधम सिंह जी को देश भक्ति गीत बहुत ही पसंद थे, वह उनको हमेशा सुना करते थे. उस समय के महान क्रांतिकारी कवि राम प्रसाद बिस्मिल जी के द्वारा लिखे गए गीतों को सुनने के, वे बहुत शौकीन थे.

उधम सिंह की क्रांतिकारी गतिविधियां ( Udham Singh Krantikari Gatividhiyan)

जलियांवाला बाग की निंदनीय घटना

जलिया वाले बाग में अकारण निर्दोष लोगों को अंग्रेजों ने मृत्यु के घाट उतार दिया था. इस निंदनीय घटना में बहुत सारे लोग मरे थे. जिनमें से कुछ बुजुर्ग, बच्चे , महिलाएं और नौजवान पुरुष भी शामिल थे. इस दिल दहला देने वाली घटना को उधम सिंह ने अपने आंखों से देख लिया था , जिससे उनको बहुत ही गहरा दुख हुआ था और उन्होंने उसी समय ठान लिया, कि यह सब कुछ जिसके इशारे पर हुआ है , उसको उसके किए की सजा जरूर देकर रहेंगे ऐसा उन्होंने उसी समय प्रण ले लिया.

उधम सिंह क्रांतिकारी राजनीति में शामिल हो गए और भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी समूह से बहुत प्रभावित थे। 1924 में उधम सिंह ग़दर पार्टी में शामिल हो गए, औपनिवेशिक शासन को उखाड़ फेंकने के लिए भारतीयों को विदेशों में संगठित किया । 1927 में, वह भगत सिंह के आदेश पर 25 सहयोगियों के साथ-साथ रिवाल्वर और गोला-बारूद लेकर भारत लौट आए। इसके तुरंत बाद, उसे बिना लाइसेंस के हथियार रखने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। रिवॉल्वर, गोला-बारूद, और “ग़दर-ए-गंज” (“वॉयस ऑफ़ रिवोल्ट”) नामक ग़दर पार्टी के निषिद्ध पेपर की प्रतियां जब्त कर ली गईं। उन पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें पांच साल जेल की सजा सुनाई गई

1931 में जेल से रिहा होने के बाद, सिंह की गतिविधियों पर पंजाब पुलिस की लगातार निगरानी थी। उसने कश्मीर के लिए अपना रास्ता बना लिया, जहां वह पुलिस से बचने और जर्मनी भाग जाने में सक्षम था। 1934 में वे लंदन पहुंचे, जहां उन्हें एक इंजीनियर के रूप में रोजगार मिला।

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निजी तौर पर, उन्होंने माइकल ओ’डायर की हत्या की योजना बनाई। 1939 और1940 के लिए सिंह की डायरियों में, वह कभी-कभी ओ’डायर के उपनाम को “ओ’डायर” के रूप में गलत लिखते हैं, एक संभावना छोड़ते हुए कि उन्होंने ओ’डायर को जनरल डायर के साथ भ्रमित किया होगा।

कैक्सटन हॉल में शूटिंग


13 मार्च 1940 को, माइकल ओ’डायर लंदन के कैक्सटन हॉल में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन और सेंट्रल एशियन सोसाइटी की एक संयुक्त बैठक में बोलने वाले थे। सिंह ने एक किताब के अंदर एक रिवॉल्वर छुपाई थी, जिसके पन्ने रिवॉल्वर के आकार में कटे हुए हैं। यह रिवॉल्वर उसने एक पब में एक सैनिक से खरीदी थी, [ फिर हॉल में प्रवेश किया और एक खुली सीट मिली।

जैसे ही बैठक समाप्त हुई, सिंह ने ओ’डायर को दो बार गोली मार दी क्योंकि वह बोलने वाले मंच की ओर बढ़ रहा था। इनमें से एक गोली ओ’डायर के दिल और दाहिने फेफड़े को पार कर गई, जिससे वह लगभग तुरंत ही मर गया।शूटिंग में घायल हुए अन्य लोगों में सर लुइस डेन, लॉरेंस डुंडास, द्वितीय मार्क्वेस ऑफ़ ज़ेटलैंड,और चार्ल्स कोचरन-बेली, द्वितीय बैरन लैमिंगटन शामिल थे। सिंह ने शूटिंग के तुरंत बाद आत्मसमर्पण कर दिया

कहा जाता है, कि उन्होंने इसलिए इस दिन का इंतजार किया ताकि पूरी दुनिया जनरल डायर द्वारा किए गए जघन्य अपराध की सजा पूरी दुनिया देख सकें. उन्होंने अपने काम को अंजाम देने के बाद गिरफ्तारी के डर से भागने का जरा सा भी प्रयास नहीं किया और उसी जगह पर वह शांत खड़े रहे. उनको इस बात का गर्व था , कि उन्होंने अपने देशवासियों के लिए वह करके दिखाया जो सभी भारतीय देशवासी चाहते थे. ऐसे ना जाने कितने स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने देश के प्रति अपना प्रेम , सहयोग और अपना आत्मसमर्पण प्रदान किया है.

उधम सिंह की शहादत ( Udham Singh Fansi )

हिरासत में रहते हुए, उन्होंने खुद को “राम मोहम्मद सिंह आज़ाद” कहा जाता है की नाम के पहले तीन शब्द पंजाब के तीन प्रमुख धार्मिक समुदायों (हिंदू, मुस्लिम और सिख) को दर्शाते हैं; अंतिम शब्द “आज़ाद” (शाब्दिक रूप से “मुक्त”) उनकी उपनिवेश विरोधी भावना को दर्शाता है।

अपने मुकदमे की प्रतीक्षा करते हुए, सिंह 42 दिनों की भूख हड़ताल पर चले गए और उन्हें जबरदस्ती खिलाया गया। 4 जून 1940 को, उनका मुकदमा सेंट्रल क्रिमिनल कोर्ट, ओल्ड बेली में जस्टिस एटकिंसन के सामने वी.के. कृष्ण मेनन और सेंट जॉन हचिंसन उनका प्रतिनिधित्व करते हैं। जी. बी. मैकक्लर अभियोजन पक्ष के वकील थे। उनकी प्रेरणा के बारे में पूछे जाने पर, सिंह ने समझाया:

मैंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि मुझे उससे नफरत थी। वह इसके लायक है। वह असली अपराधी था। वह मेरे लोगों की आत्मा को कुचलना चाहता था, इसलिए मैंने उसे कुचल दिया है। पूरे 21 साल से मैं बदला लेने की कोशिश कर रहा हूं। मुझे खुशी है कि मैंने काम किया है। मैं मौत से नहीं डरता। मैं अपने देश के लिए मर रहा हूं। मैंने अपने लोगों को ब्रिटिश शासन के तहत भारत में भूख से मरते देखा है। मैंने इसका विरोध किया है, यह मेरा कर्तव्य था। मातृभूमि की खातिर मुझे मौत से बड़ा सम्मान और क्या दिया जा सकता है?

सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और मौत की सजा सुनाई गई। 31 जुलाई 1940 को, सिंह को अल्बर्ट पियरेपॉइंट द्वारा पेंटनविले जेल में फांसी दी गई थी। उनके अवशेष पंजाब के अमृतसर में जलियांवाला बाग में संरक्षित हैं। प्रत्येक 31 जुलाई को विभिन्न संगठनों द्वारा सुनाम में मार्च निकाला जाता है और शहर में सिंह की प्रत्येक प्रतिमा को फूलों की माला से श्रद्धांजलि दी जाती है।


जनरल डायर के मृत्यु का दोषी 4 जून 1940 को उधम सिंह को घोषित कर दिया गया.


उधम सिंह जी की अस्थियों को सम्मान पूर्ण भारत वापस लाया गया. और उनके गांव में उनकी समाधि को बनाया गया.
इस तरह उन्होंने अपने देशवासियों के लिए मात्र 40 वर्ष की आयु में अपने आप को समर्पण कर दिया. जिस दिन उधम सिंह जी को फांसी दी गई थी, उसी दिन से भारत में क्रांतिकारियों का आक्रोष अंग्रेजों के प्रति और भी बढ़ गया था. इनके शहीद होने के मात्र 7 वर्ष बाद भारत अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हो गया था.

उधम सिंह का सम्मान और विरासत (Udham Singh Honours)


सिखों के हथियार जैसे :- चाकू, डायरी और शूटिंग के दौरान उपयोग की गई गोलियों को स्कॉटलैंड यार्ड में ब्लैक म्यूजियम में उनके सम्मान के रूप में रखा गया है.
राजस्थान के अनूपगढ़ में शहीद उधम सिंह के नाम पर चौकी भी मौजूद है.
अमृतसर के जलिया वाले बाग के नजदीक में सिंह लोगों को समर्पित एक म्यूजियम भी बनाया गया है.
उधम सिंह नगर जो झारखंड में मौजूद है. इस जिले के नाम को भी उन्हीं के नाम से प्रेरित होकर रखा गया था.
उनकी पुण्यतिथि के दिन पंजाब और हरियाणा में सार्वजनिक अवकाश रहता है.
उधम सिंह जी के द्वारा दिए गए बलिदान को कई भारतीय फिल्मों में फिल्माया गया है, जो इस प्रकार हैं:-


हम जिस स्वतंत्र भारत में रह रहे हैं उसके पीछे उधम सिंह जैसे स्वतंत्रा सेनानियों का ही हाथ रहा है, इसको याद रखना चाहिए. हम सभी देशवासियों का यह कर्तव्य बनता है कि हमने जिन जिन स्वतंत्रा सेनानियों के द्वारा आजादी पाई है , उनको सदैव अपने दिल में बरसाए रखे. स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा दिए गए बलिदान को याद रखने के लिए हमें सदैव एकजुट रहना चाहिए और अपनी अखंडता और अपनी एकता पर सदैव गर्व करना चाहिए.

FAQ
Q : उधम सिंह कौन थे ?
Ans : ये वाही व्यक्ति थे जिन्होंने जलियांवाला बाग़ हत्याकांड के आरोपी जनरल डायर को मारा था.

Q : उधम सिंह का जन्म कब हुआ ?
Ans : 26 दिसंबर 1899 को

Q : उधम सिंह का जन्म स्थान क्या है ?
Ans : पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम क्षेत्र में हुआ

Q : उधम सिंह ने जनरल डायर को क्यों मारा ?
Ans : क्योकि वह जलियांवाला बाग़ का मुख्य आरोपी था.

Q : उधम सिंह को क्या सजा सुनाई गई थी ?
Ans : फांसी की सजा

Q : उधम सिंह की मृत्यु कब हुई ?
Ans : 31 जुलाई, 1940

Q : उधम सिंह की जाति क्या है ?
Ans : उधम सिंह जी दलित जाति के थे.

Q : उधम सिंह ने जेल में रहते हुए अपना नाम क्या रख लिया था ?
Ans : राम मोहम्मद सिंह आजाद

Q : उधम सिंह ने जनरल डायर को कब मारा था ?
Ans : 24 जुलाई, 1927 को

Q : उधम सिंह के बायोपिक फिल्म कब आ रही है ?
Ans : 16 अक्टूबर को रिलीज़ होने की उम्मीद है.

Q : उधम सिंह की बायोपिक फिल्म का नाम क्या है ?
Ans : सरदार उधम सिंह