टीपू सुल्तान का इतिहास (Tipu Sultan biography In Hindi)

Tipu Sultan Wikipedia In Hindi टीपू सुल्तान मैसूर साम्राज्य के शासक थे, जो कि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ युद्ध में अपनी बहादुरी के लिए प्रसिद्ध थे.टीपू सुल्तान अपनी वीरता और साहस के लिए जाने जाते थे. इन्हें अंग्रेजों, जो कि सुल्तान के शासन के अधीन प्रदेशों को जीतने की कोशिश किया करते थे, के खिलाफ अपनी बेहतरीन लड़ाई के लिए भारत के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी के रूप में महत्व दिया जाता है. मंगलौर की संधि, जो कि द्वितीय एंग्लो – मैसूर युद्ध को खत्म करने के लिए थी, इसमें उन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ मिलकर हस्ताक्षर किये, यह आखिरी अवसर था कि एक भारतीय राजा ने अंग्रेजों पर हुकुमत की.

टीपू सुल्तान ने मैसूर के सुल्तान हैदर अली के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में, सन 1782 में अपने पिता की मृत्यु के बाद उनका सिंहासन संभाला. शासक के रूप में, उन्होंने अपने प्रशासन में कई नये परिवर्तन किये, और साथ ही लोहे से बने मैसूरियन राकेट का भी विस्तार किया, जोकि बाद में ब्रिटिश सेना के अग्रिमों (Advances) के खिलाफ तैनात किया गया था. इसके साथ ही इन्होंने बहुत से युद्ध में अपना बेहतरीन प्रदर्शन देकर, भारत के इतिहास में अपनी जगह बनाई थी.

टीपू सुल्तान का इतिहास  Tipu Sultan History In Hindi

टीपू सुल्तान के जीवन परिचय के बारे में निम्न सूची के आधार पर दर्शाया गया है-

क्र..जीवन परिचय बिंदुजीवन परिचय
1.पूरा नामसुल्तान सईद वाल्शारीफ़ फ़तह अली खान बहादुर साहब टीपू
2.जन्म20 नवंबर सन 1750
3.जन्म स्थानदेवनहल्ली, आज के समय में बेंगलौर, कर्नाटका
4.मृत्यु4 मई सन 1799
5.प्रसिद्धमैसूर साम्राज्य के शासक
6.राष्ट्रीयताभारतीय
7.धर्मइस्लाम, सुन्नी इस्लाम
8.पिताहैदर अली
9.माताफ़ातिमा फख्र – उन – निसा
10.पत्नीसिंध सुल्तान
11.मृत्यु स्थानश्रीरंगपट्टनम, आज के समय में कर्नाटका

टीपू सुल्तान का जन्म और शिक्षा (Tipu Sultan Education) –

टीपू सुल्तान का जन्म 20 नवंबर सन 1750 को देवनहल्ली शहर, जिसे आज के समय में बेंगलौर, कर्नाटका के नाम से जाना जाता है, में हुआ. इनके पिता हैदर अली थे, जोकि दक्षिण भारत में मैसूर के साम्राज्य के एक सैन्य अफसर थे, और माता फ़ातिमा फख्र – उन – निसा थीं. इनके पिता सन 1761 में मैसूर के साम्राज्य के वास्तविक शासक के रूप में सत्ता में आये. इन्होंने अपने रुतबे से मैसूर राज्य में शासन किया. हैदर अली, जोकि खुद पढ़े लिखे नहीं थे, फिर भी इन्होंने अपने ज्येष्ठ पुत्र राजकुमार टीपू सुल्तान को अच्छी शिक्षा देने के बारे में सोचा और उन्हें अच्छी शिक्षा भी दिलवाई.

टीपू सुल्तान ने बहुत से विषयों जैसे हिन्दुस्तानी भाषा (हिंदी – उर्दू), फारसी, अरेबिक, कन्नड़, क़ुरान, इस्लामी न्यायशास्त्र, घुड़सवारी, शूटिंग और तलवारबाजी आदि पर ज्ञान प्राप्त किया. इनके पिता हैदर अली के फ़्रांसिसी अधिकारीयों के साथ राजनीतिक सम्बन्ध होने से, युवा राजकुमार टीपू सुल्तान को सेना में और अत्यधिक कुशल फ़्रांसिसी अधिकारीयों द्वारा राजनीतिक मामलों में प्रशिक्षित किया गया था.

टीपू सुल्तान का शुरुआती जीवन (Tipu Sultan early life) –

टीपू सुल्तान का शुरूआती जीवन बहुत ही संघर्षमय था. उनके शिक्षा और राजनीतिक मामलों में प्रशिक्षित होने के बाद, उनके पिता ने उन्हें युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया. वे सिर्फ 15 साल के थे, जब उन्होंने सन 1766 में हुई ब्रिटिश के खिलाफ मैसूर की पहली लड़ाई में अपने पिता का साथ दिया. इन वर्षों में हैदर, पूरे दक्षिण भारत में सबसे शक्तिशाली शासक बनने के लिए प्रसिद्ध हो गए थे. अपने पिता के शासक बनने के बाद टीपू ने अपने पिता की नीति को जोकि अंग्रेजों के खिलाफ उनके संघर्ष में फ़्रांसिसियों के साथ थी, को जारी रखा और इसी के साथ टीपू सुल्तान ने अपने पिता के कई सफल सैन्य अभियानों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ कई लड़ाइयाँ लड़ी और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों, अपने पिता के साम्राज्य को पड़ने से बचाने के लिए, अपना सबसे अच्छा प्रदर्शन देने की कोशिश की. वे बहुत हद तक अपने देश की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध रहे.   

टीपू सुल्तान का शासनकाल –

टीपू सुल्तान का शासनकाल निम्न चरणों में पूरा होता है-

  • सन 1779 में, अंग्रेजों ने माहे के फ़्रांसिसी नियंत्रित बंदरगाह (Port) में कब्ज़ा किया, जोकि टीपू के संरक्षण के तहत था. टीपू सुल्तान के पिता हैदर अली ने सन 1780 में प्रतिशोध लेने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ शत्रुता की शुरुआत की, और द्वितीय एंग्लो – मैसूर युद्ध के रूप में एक अभियान चलाया, जिसमें उन्होंने महत्वपूर्ण सफलता हासिल की. हालांकि जैसे – जैसे युद्ध आगे बढ़ता चला गया, हैदर अली कैंसर के साथ पीढित हो गए और सन 1782 में उनकी मृत्यु हो गई.
  • अपने पिता की मृत्यु के बाद, उनके ज्येष्ठ पुत्र होने के कारण 22 दिसंबर सन 1782 में टीपू सुल्तान ने अपने पिता की जगह ली और मैसूर साम्राज्य के शासक बन गए. शासक बनने के बाद टीपू सुल्तान ने तुरंत ही अंग्रेजों की अग्रीमों (Advances) की जाँच करने के लिए मराठों और मुगलों के साथ गठबंधन कर, सैन्य रणनीतियों पर काम करना शुरू कर दिया. अंततः सन 1784 में टीपू द्वितीय एंग्लो – मैसूर युद्ध को ख़त्म करने के लिए अंग्रेजों के साथ मंगलौर की संधि पर हस्ताक्षर करने में सफल हो गए थे.
  • शासक के रूप में, टीपू सुल्तान एक कुशल व्यक्ति साबित हुए. टीपू सुल्तान ने अपने पिता की पीछे छोड़ी हुई परियोजनाओं जैसे सड़कें, पुल, प्रजा के लिए मकान और बंदरगाह बनवाना आदि को पूरा किया, और युद्ध में राकेट के उपयोग में कई सारे सैन्य नये परिवर्तन किये और साथ ही लोहे से निर्मित मैसूरियन रोकेट और मिसाइल का भी निर्माण किया. इसका उपयोग वे अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में किया करते थे. अपने निर्धारित प्रयासों के माध्यम से, उन्होंने ऐसा अदभूत सैन्य बल बनाया जोकि अंग्रेजों के सैन्य बल को गंभीर नुकसान पहुंचा सके.
  • अब तक अधिक महत्वकांक्षी होते हुए, उन्होंने अपने क्षेत्र का विस्तार करने की योजना बनाई और साथ ही त्रवंकोर पर अपनी आँखें टिका रखीं, जोकि मंगलौर की संधि के अनुसार, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का एक सहयोगी राज्य था. उन्होंने दिसम्बर सन 1789 में त्रवंकोर की तर्ज पर एक हमले का शुभारंभ किया, और त्रवंकोर के महाराजा की सेना से प्रतिशोध के साथ मुलाकात की. यहीं से तृतीय एंग्लो – मैसूर युद्ध की शुरुआत हुई.
  • त्रवंकोर के महाराजा ने अपनी मदद के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी से अपील की, और उसके जवाब में लार्ड कार्नवालिस ने टीपू का विरोध करते हुए एवं मजबूत सैन्य बल का निर्माण करने के लिए मराठों और हैदराबाद के निजामों के साथ गठबंधन का गठन किया.
  • सन 1790 में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने टीपू सुल्तान पर हमला किया और जल्द ही कोयंबटूर जिले पर अधिक से अधिक नियंत्रण स्थापित कर लिया. टीपू ने कार्नवालिस पर हमला किया, किन्तु वे अपने अभियान में ज्यादा सफल नही हो सके. संघर्ष 2 वर्षों तक जारी रहा और सन 1792 में युद्ध को समाप्त करने के लिए, उन्होंने श्रीरंगपट्टनम की संधि पर हस्ताक्षर कर दिए और इसके परिणामस्वरूप उन्हें मालाबार और मंगलौर को मिलाकर अपने कई प्रदेशों को खोना पड़ा.
  • हालांकि साहसिक टीपू सुल्तान ने अपने कई प्रदेशों को खोने के बाद भी, अंग्रेजों द्वारा एक दुश्मनी को बनाये रखा. सन 1799 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने मराठों और निजामों के साथ गठजोड़ कर मैसूर पर हमला किया. यह चौथा एंग्लो – मैसूर युद्ध था, जिसमें ब्रिटिशर्स ने मैसूर की राजधानी श्रीरंगपट्टनम पर कब्ज़ा कर लिया. इस लड़ाई में ईस्ट इंडिया कंपनी ने टीपू सुल्तान की हत्या कर दी. इस तरह टीपू सुल्तान का शासनकाल समाप्त हो गया और टीपू अपने पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए, वीरगति को प्राप्त हो गए.

टीपू सुल्तान की बड़ी लड़ाई (Tipu Sultan wars) –

टीपू सुल्तान ने अपने शासनकाल में 3 बड़ी लड़ाईयां लड़ी और अपनी तीसरी बड़ी लड़ाई में वे वीरगति को प्राप्त हो गए.

  • टीपू सुल्तान की पहली सबसे बड़ी लड़ाई द्वितीय एंग्लो – मैसूर लड़ाई थी. टीपू सुल्तान एक बहादुर योद्धा थे और द्वितीय एंग्लो – मैसूर युद्ध में, उन्होंने अपनी क्षमता को साबित भी किया. ब्रिटिश सेना से लड़ने के लिए उनके पिता ने उन्हें युद्ध में भेजा और उन्होंने प्रारंभिक संघर्ष से युद्ध में अपने साहस का प्रदर्शन किया. युद्ध के मध्य में ही टीपू सुल्तान के पिता हैदर अली जोकि कैंसर नामक बीमारी से ग्रस्त थे, की मृत्यु हो गई. अपने पिता की मृत्यु के बाद सन 1782 में ही मैसूर का शासक बने, टीपू सुल्तान ने युद्ध में बेहतरीन प्रदर्शन कर सन 1784 में मंगलौर की संधि के साथ युद्ध की समाप्ति की और सफलता हासिल की.
  • टीपू सुल्तान की तृतीय एंग्लो – मैसूर लड़ाई दूसरी सबसे बड़ी लड़ाई थी जोकि ब्रिटिश सेना के खिलाफ ही थी. हालांकि इस लड़ाई में टीपू सुल्तान की बड़ी हार हुई. युद्ध श्रीरंगपट्टनम की संधि के साथ समाप्त हो गया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें अपने प्रदेशों का आधा हिस्सा अन्य हस्ताक्षरकर्ताओं और साथ ही हैदराबाद के निजाम एवं मराठा साम्राज्य के प्रतिनिधि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए छोड़ देना पड़ा.
  • इसके पश्चात सन 1799 में हुई चौथी एंग्लो – मैसूर लड़ाई थी जोकि टीपू सुल्तान की तीसरी सबसे बड़ी लड़ाई थी. इसमें टीपू सुल्तान ने ब्रिटिश सेना के खिलाफ युद्ध लड़ा, किन्तु इस युद्ध में उनकी की बहुत बड़ी हार हुई. इसमें उन्होंने मैसूर को खों दिया और साथ ही उनकी मृत्यु भी हो गई.

इस तरह टीपू ने अपने जीवन में तीन बड़ी लड़ाईयां लड़ी, और इसी के साथ उन्होंने अपना नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज करा लिया.

टीपू सुल्तान का व्यक्तिगत जीवन और विरासत

टीपू सुल्तान का पूरा नाम सुल्तान सईद वाल्शारीफ़ फ़तह अली खान बहादुर साहब टीपू हैं. ये सुन्नी इस्लाम धर्म से सम्बन्ध रखते है. टीपू सुल्तान की पत्नी का नाम सिंध सुल्तान था, हालांकि टीपू सुल्तान ने अपने जीवन में कई शादियाँ की जिनसे उनके कई बच्चे भी हुए, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं – शहज़ादा हैदर अली सुल्तान, शहज़ादा अब्दुल खालिक़ सुल्तान, शहज़ादा मुहि – उद – दिन सुल्तान, शहज़ादा मु’इज्ज़ – उद – दिन सुल्तान हैं.

टीपू सुल्तान का नाम पहले भारतीय राजाओं में से एक के रूप में लिया जाता है, जिनकी युद्ध के मैदान में औपनिवेशिक ब्रिटिश के खिलाफ अपने साम्राज्य की रक्षा करते हुए मृत्यु हो गई. इसके लिए इन्हें अधिकारिक तौर पर भारत सरकार द्वारा एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में मान्यता दी गई है. हालांकि टीपू सुल्तान की कठोरता की वजह से उन्हें भारत के कई क्षेत्रों में एक अत्याचारी शासक भी कहा जाता था.

टीपू सुल्तान की मृत्यु (Tipu Sultan death) –

टीपू सुल्तान की तीसरी बड़ी लड़ाई जो कि चौथा एंग्लो – मैसूर युद्ध था, में 4 मई सन 1799 को मृत्यु हो गई. इनकी मृत्यु मैसूर की राजधानी श्रीरंगपट्टनम में हुई. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने मैसूर पर हमला कर, टीपू सुल्तान को धोखा देते हुए उनकी हत्या कर दी और मैसूर पर अपना कब्ज़ा कर लिया. इनके शव को मैसूर के श्रीरंगपट्टनम शहर (जिसे आज के समय में कर्नाटका कहा जाता है) में दफ़न किया गया. टीपू सुल्तान की तलवार को ब्रिटिशर्स ब्रिटेन ले गए. इसी के साथ उन्होंने अपने साम्राज्य की रक्षा करते हुए, युद्ध लड़ते – लड़ते अपने प्राणों की आहुति दे दी और वे शहीद हो गए.

टीपू सुल्तान के रोचक तथ्य (Interesting facts About Tipu Sultan) –

टीपू सुल्तान के बारे में कुछ रोचक तत्थ इस प्रकार हैं-

  • टीपू आम तौर पर मैसूर के शेर के रूप में जाने जाते हैं और उन्होंने अपने शासन के प्रतीक (बाबरी) के रूप में इस जानवर को अपनाया.
  • टीपू सुल्तान ने हिन्दुओं और ईसाईयों को इस्लाम धर्म में शामिल कर, उनके मंदिरों और चर्चों को नष्ट कर दिया.
  • फ्रेंच द्वारा पहले रोकेट का अविष्कार किया गया, जोकि टीपू सुल्तान और उनके पिता हैदर अली की योजना पर आधारित था. जिसका उपयोग ब्रिटिश सेना के खिलाफ किया गया था.
  • इन्होंने बहुत ही कम उम्र में शूटिंग, तलवारबाजी और घुड़सवारी सीख ली थी और यही कारण था कि उन्होंने 15 साल की उम्र में अपने पिता का साथ देते हुए युद्ध में प्रदर्शन दिया.
  • टीपू सुल्तान की मृत्यु के बाद ब्रिटिशर्स उनकी तलवार लेकर, ब्रिटेन चले गए और इसे अपनी जीत की ट्रोफी समझ कर वहां के संग्रहालय में इसे स्थापित कर लिया.
  • टीपू सुल्तान ने मैसूर में नौसेना के एक भवन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके अंतर्गत 72 तोपों के 20 रणपोत और 62 तोपों के 20 पोत आते हैं.
  • ये भारत और पाकिस्तान में और कई क्षेत्रों में भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के नायक के रूप में प्रतिष्ठित हैं. हालांकि भारत के कई क्षेत्रों में इन्हें एक अत्याचारी शासक के रूप में भी माना जाता है.
  • भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जी ने कहा कि टीपू सुल्तान दुनिया के पहले युद्ध रोकेट के प्रवर्तक हैं. डॉ ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का जीवन परिचय यहाँ पढ़ें.
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