महावीर जैन जीवन परिचय | Mahavira Jain jivani

महावीर जैन

पूरे भारत वर्ष मे महावीर जयंती जैन समाज द्वारा भगवान महावीर के जन्म उत्सव के रूप मे मनाई जाती है. इस त्योहार को महावीर जयंती के साथ साथ महावीर जन्म कल्याणक नाम से भी जानते है. महावीर जयंती हर वर्ष चैत्र माह के 13 वे दिन मनाई जाती है, इस दिन हर तरह के जैन दिगम्बर, श्वेताम्बर आदि एक साथ मिलकर इस उत्सव को मनाते है

भगवान महावीर जैन समाज के 24वें तीर्थंकर थे. तीर्थंकर मतलब जो इंसान के रूप में महान आत्मा या भगवान जो कि अपने ध्यान और ईश्वर की तपस्या से भगवान बना हो. किसी भी जैन के लिए महावीर किसी भगवान से कम नहीं है .उनके दर्शन करने को गीता के ज्ञान के समान माना गया है.

भगवान महावीर का जीवन उनके जन्म के ढाई हजार साल भी पूरी दुनिया को अहिंसा का पाठ पढ़ा रहा है. पंचशील सिद्धान्त के प्रर्वतक और जैन धर्म के चौबिसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी अहिंसा के प्रमुख ध्‍वज वाहकों में से एक हैं. जैन ग्रंथों के अनुसार, 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी के मोक्ष प्राप्ति के  298 वर्ष बाद महावीर स्वामी का जन्म‍ ऐसे युग में हुआ, जहां पशु‍बलि, हिंसा और जाति-पाति के भेदभाव का अंधविश्वास था. 

महावीर जैन के प्रारंभिक जीवन

महावीर के बचपन का नाम वर्धमान था. 30 साल की उम्र में उन्होंने अपना घर त्यागकर लोगों के मन में आध्यात्मिक जागृति के लिए संन्यास ले लिया और अगले साढ़े 12 वर्षों तक उन्होंने गहरा तप और ध्यान किया. तप से ज्ञान अर्जित कर लेने के बाद भगवान महावीर ने पूरे भारतवर्ष में अगले 30 सालों तक जैन धर्म का प्रचार प्रसार किया

महावीर स्वामी का जीवन परिचय

क्र. . बिंदु(Points) जानकारी (Information)
1. नाम(Name) महावीर
2. वास्तविक नाम (Real Name) वर्धमान
3. जन्म(Birth) 599 ईसा पूर्व
4. जन्म स्थान (Birth Place) कुंडलग्राम
5. पत्नी का नाम (Wife Name) यशोदा
6. वंश(Dynasty) इक्ष्वाकु
7. पिता (Father Name) राजा सिद्धार्थ
8. पुत्र(Son) प्रियदर्शन
9. मोक्षप्राप्ति(Death) 527 ईसा पूर्व
10. मोक्षप्राप्ति स्थान(Death Place) पावापुरी, जिला नालंदा, बिहार

महावीर जैन का जन्म हुआ था

महावीर स्वामी(Mahavira Swami) का जन्म एक राजसी क्षत्रिय परिवार में हुआ। भगवान महावीर का जन्म लगभग 600 वर्ष पूर्व क्षत्रियकुण्ड नगर मे हुआ. भगवान महावीर की माता का नाम महारानी त्रिशला था . भगवान महावीर को कई नामो से पुकारा गया उनमे से प्रमुख है  वर्धमान, महावीर, सन्मति, श्रमण आदि थे. महावीर स्वामी के भाई नंदिवर्धन और बहन सुदर्शना थी.

बचपन से ही महावीर तेजस्वी और साहसी थे. इसलिए इनका नाम “महावीर” पड़ा। शिक्षा पूरी होने के बाद इनके माता—पिता ने इनका विवाह राजकुमारी यशोदा के साथ कर दिया. बाद में उन्हें एक पुत्री प्रियदर्शना की प्राप्ति हुई, जिसका विवाह जमली से हुआ

ऊँचे महल के  शानशौकत उन्हें ज्यादा पसंद नहीं थे । राजा सिध्दार्थ ने उनका विवाह यशोधरा से करने का प्रस्ताव रखा तो उसके लिए भी महावीर स्वामी तैयार नहीं थे। लेकिन पिता की आज्ञा की वजह से उन्होंने यशोधरा से विवाह किया और इससे उनकी एक सुन्दर पुत्री प्रियदर्शना ने जन्म लिया

श्वेताम्बर जैन गुरूओ का मानना है है कि वर्द्धमान का विवाह यशोधरा से हुआ था लेकिन दिगम्बर सम्प्रदाय में ऐसी मान्यता है कि वर्द्धमान का विवाह नहीं हुआ था| वह बाल ब्रह्मचारी थे|

जब महावीर 28 साल के थे तब उनके माता-पिता की मृत्यु हो गयी थी । उनके मन मे वैराग्य लेने की इच्छा जागृत हुई  परंतु  उनके बड़े भाई  ने कुछ समय रुकने का आग्रह किया. अपने भाई की आज्ञा का मान रखते हुये 2 वर्ष पश्चात 30 वर्ष की आयु मे वैराग्य लिया.

इतनी कम आयु में घर का त्याग कर ‘केशलोच’ के साथ जंगल में रहने लगे. अब वह जंगल में एक अशोक के वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान लगाया करते वर्द्धमान महावीर ने 12 साल तक मौन तपस्या की और तरह-तरह के कष्ट झेले। अन्त में उन्हें ‘केवलज्ञान’ प्राप्त हुआ।। उन्होंने शांति प्राप्त की, अपने गुस्से पर काबू करना सिखा, हर प्राणी के साथ उन्होंने अहिंसा की नीति अपनाई.

12 साल तपस्या करने के दौरान वे बिहार, बंगाल, उड़ीसा और उत्तरप्रदेश भी गए. वहाँ पर उन्होंने जैन धर्म का प्रचार किया. इसके बाद उन्हें ‘केवलिन’ नाम से जाना गया तथा उनके उपदेश चारों और फैलने लगे

महावीर जैन शिक्षाएं

महावीर जैन ने लोगों को जीवन का एक मूल मन्त्र दिया। उनकी दी हुई शिक्षाएं इस प्रकार हैं –सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह

सत्य –सत्य सबसे बलवान है और हर इंसान को किसी भी परिस्थिति में सत्य का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। सदा सत्य बोलो।

अहिंसा – दूसरों के प्रति हिंसा की भावना नहीं रखनी चाहिए। जितना प्रेम हम खुद से करते हैं उतना ही प्रेम दूसरों से भी करें।

अस्तेय – महावीर जैन कहते हैं कि दूसरों की चीज़ों को चुराना और दूसरों की चीज़ों की इच्छा करना महापाप है। जो मिला है उसमें संतुष्ट रहें।

बृह्मचर्य – महावीर जी कहते हैं कि बृह्मचर्य सबसे कठोर तपस्या है और जो पुरुष इसका पालन करते हैं वो मोक्ष की प्राप्ति करते हैं

अपरिग्रह – ये दुनियां नश्वर है। चीज़ों के प्रति मोह ही आपके दुखों का कारण है। सच्चे इंसान किसी भी सांसारिक चीज़ का मोह नहीं करते

महावीर जिस वन में थे वहाँ 11 ब्राह्मणों को बुलाया गया ताकि वे महावीर के कहे शब्दों को लिखित रूप दे सके. यही आगे चलकर त्रिपादी ज्ञान, उपनिव, विगामिवा और धुवेइव कहलाये.

महावीर जैन धर्म 

वे महावीर स्वामी ही थे जिनके कारण ही 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तों ने एक विशाल धर्म ‘जैन धर्म’ का रूप धारण किया

 भगवान महावीर के कार्यकाल को ईराक के जराथ्रुस्ट, फिलिस्तीन के जिरेमिया, चीन के कन्फ्यूसियस तथा लाओत्से और युनान के पाइथोगोरस, प्लेटो और सुकरात के समकालीन  माना जाता है

. उनकी शिक्षाओं से तत्कालीन राजवंश  प्रभावित हुए और ढेरों राजाओं ने जैन धर्म को अपना राजधर्म बनाया. बिम्बसार और चंद्रगुप्त मौर्य का नाम इन राजवंशों में प्रमुखता से लिया जा सकता है, जो जैन धर्म के अनुयायी बने.

 उन्होंने तत्कालीन हिन्दु समाज में व्याप्त जाति व्यवस्था का विरोध किया और सबको समान मानने पर जोर दिया. उन्होंने जियो और ​जीने दो के सिद्धान्त पर जोर दिया. सबको एक समान नजर में देखने वाले भगवान महावीर अहिंसा और अपरिग्रह के साक्षात मूर्ति थे. वे किसी को भी कोई दु:ख नहीं देना चाहते थे.

महावीर जैन के उपदेश 

भगवान महावीर ने अहिंसा, तप, संयम, पाच महाव्रत, पाच समिति, तीन गुप्ती, अनेकान्त, अपरिग्रह एवं आत्मवाद का संदेश दिया.

महावीर स्वामी जी ने यज्ञ के नाम पर होने वाली पशु-पक्षी तथा नर की बाली का पूर्ण रूप से विरोध किया .  महावीर स्वामी जी ने उस समय जाती-पाति और लिंग भेद को मिटाने के लिए उपदेश दिये.

महावीर के शिष्य अपने मित्र और सगे सम्बन्धी को महावीर की शरण में लाये. महावीर उन्हें सुखद जीवन जीने और मोक्ष प्राप्ति का ज्ञान देने लगे. लोगों की संख्या बढ़कर लाखों तक पहुँच गयी. उनकी संस्था में 14 हजार मुनि, 36 हजार आर्यिका, 1 लाख 59 हजार श्रावक और 3 लाख 18 हजार श्राविका थी.

महावीर मृत्यु

महावीर ने  अभिजात वर्ग की संस्कृत के खिलाफ स्थानीय भाषा का भी निर्माण कर उन्हें फैलाने के लिए अपना जीवन समर्पित किया. भगवान महावीर ने आखिरी प्रवचन पावापूरी में दिया था. वो समागम लगातार 48 घंटे चला था. अपने आखिरी प्रवचन को ख़त्म करने के बाद 527 ईसा पूर्व 72 वर्ष की आयु में उन्हें मौक्ष की प्राप्ति हुई.

महावीर जयंती कब है

वर्ष 2022  मे महावीर जयंती 6 अप्रैल  के दिन मनाई जाएगी. महावीर जयंती अधिकतर त्योहारो से अलग बहुत ही शांत माहौल मे विशेष पूजा अर्चना द्वारा मनाई जाती है . इस दिन भगवान महावीर का विशेष अभिषेक किया जाता है तथा जैन बंधुओ द्वारा अपने मंदिरो मे जाकर विशेष ध्यान और प्रार्थना की जाती है . इस दिन हर जैन मंदिर मे गरीबो मे दान दक्षिणा का विशेष महत्व है.  भारत मे गुजरात, राजेस्थान, बिहार और कोलकाता मे उपस्थित प्रसिध्द मंदिरो मे यह उत्सव विशेष रूप से मनाया जाता है.