मोहन भागवत जीवन परिचय | Mohan Bhagwat Wikipedia in Hindi

मोहन भागवत का जीवन परिचय

        मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) जन्म: 11 सितम्बर, 1950, चन्द्रपुर, महाराष्ट्र) एक पशु चिकित्सक और 2009 से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक हैं। उन्हें एक व्यावहारिक नेता के रूप में देखा जाता है। के एस सुदर्शन ने अपनी सेवानिवृत्ति पर उन्हें अपने उत्तराधिकारी के रूप में चुना था।

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मोहन भागवत का परिवार

मोहन मधुकर भागवत का जन्म भारत के बॉम्बे राज्य के चंद्रपुर में एक करहड़े ब्राह्मण मराठी परिवार में हुआ था। ] वह आरएसएस कार्यकर्ताओं के परिवार से आते हैं। उनके पिता मधुकर राव भागवत, चंद्रपुर क्षेत्र के लिए कार्यवाह (सचिव) और बाद में गुजरात के प्रांत प्रचारक (प्रांतीय प्रमोटर) थे। उनकी मां मालती आरएसएस महिला विंग की सदस्य थीं।

मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने चन्द्रपुर के लोकमान्य तिलक विद्यालय से अपनी स्कूली शिक्षा और जनता कॉलेज चन्द्रपुर से बीएससी प्रथम वर्ष की शिक्षा पूर्ण की। उन्होंने पंजाबराव कृषि विद्यापीठ, अकोला से पशु चिकित्सा और पशुपालन में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। 1975 के अन्त में जब देश तत्कालीन प्रधानमन्त्री इंदिरा गान्धी द्वारा लगाए गए आपातकाल से जूझ रहा था, उसी समय वे पशु चिकित्सा में अपना स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम अधूरा छोड़कर संघ के पूर्णकालिक स्वयंसेवक बन गये।

आपातकाल के दौरान भूमिगत रूप से कार्य करने के बाद 1977 में मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) महाराष्ट्र में अकोला के प्रचारक बने और संगठन में आगे बढ़ते हुए नागपुर और विदर्भ क्षेत्र के प्रचारक भी रहे। 1991 में वे संघ के स्वयंसेवकों के शारीरिक प्रशिक्षण कार्यक्रम के अखिल भारतीय प्रमुख बने और उन्होंने 1999 तक इस दायित्व का निर्वहन किया। उसी वर्ष उन्हें, एक वर्ष के लिये, पूरे देश में पूर्णकालिक रूप से कार्य कर रहे संघ के सभी प्रचारकों का प्रमुख बनाया गया।

वर्ष 2000 में जब राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया) और हो०वे० शेषाद्री ने स्वास्थ्य सम्बन्धी कारणों से क्रमशः संघ प्रमुख और सरकार्यवाह का दायित्व छोडने का निश्चय किया, तब के एस सुदर्शन को संघ का नया प्रमुख चुना गया और मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) तीन वर्षों के लिये संघ के सरकार्यवाह चुने गये।

21 मार्च 2009 को मोहन भागवत संघ के सरसंघचालक मनोनीत हुए। वे अविवाहित हैं तथा उन्होंने भारत और विदेशों में व्यापक भ्रमण किया है। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख चुने जाने वाले सबसे कम आयु के व्यक्तियों में से एक हैं

भागवत को 21 मार्च 2009 को आरएसएस के सरसंघचालक (मुख्य कार्यकारी) के रूप में चुना गया था। वह के.बी. हेडगेवार और एम.एस. गोलवलकर के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नेतृत्व करने वाले सबसे कम उम्र के नेताओं में से एक हैं।

जून २०१५ में, विभिन्न इस्लामी आतंकवादी संगठनों से एक उच्च खतरे की धारणा के कारण, भारत सरकार ने केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) को भागवत को चौबीसों घंटे सुरक्षा प्रदान करने का आदेश दिया। Z+ VVIP सुरक्षा कवर पर, भागवत आज सबसे सुरक्षित भारतीयों में से एक हैं।

2017 में, भागवत तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा राष्ट्रपति भवन में आधिकारिक रूप से आमंत्रित होने वाले पहले आरएसएस प्रमुख बने। सितंबर 2018 में, मोहन भागवत ने व्यापक जनता तक पहुंचने के लिए दिल्ली के विज्ञान भवन में 3 दिवसीय सत्र की अध्यक्षता की। उस समय, उन्होंने कहा कि आरएसएस ने एम.एस. गोलवलकर के “बंच ऑफ थॉट्स” के कुछ हिस्सों को त्याग दिया है जो अब वर्तमान परिस्थितियों के लिए प्रासंगिक नहीं हैं।

उन्हें एक स्पष्टवादी, व्यावहारिक और दलगत राजनीति से संघ को दूर रखने के एक स्पष्ट दृष्टिकोण के लिये जाना जाता है।

मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) को एक व्यावहारिक नेता के रूप में देखा जाता है। उन्होंने हिन्दुत्व के विचार को आधुनिकता के साथ आगे ले जाने की बात कही है। उन्होंने बदलते समय के साथ चलने पर बल दिया है। लेकिन इसके साथ ही संगठन का आधार समृद्ध और प्राचीन भारतीय मूल्यों में दृढ़ बनाए रखा है। वे कहते हैं कि इस प्रचलित धारणा के विपरीत कि संघ पुराने विचारों और मान्यताओं से चिपका रहता है, इसने आधुनिकीकरण को स्वीकार किया है और इसके साथ ही यह देश के लोगों को सही दिशा भी दे रहा है।

मोहन भागवत के विचार


        मोहन भागवत एक व्यवहारिक नेता हैं। वह आधुनिकता के साथ हिंदुत्व को अपनाने की पैरवी करते हैं। संघ की मूलभूत विशिष्टताओं को बरकरार रखते हुए मोहन भागवत समय के साथ बदलने में विश्वास रखते हैं। मोहन भागवत हिंदू धर्म और इसकी मान्यताओं का पूरा समर्थन करते हैं। लेकिन वह अस्पृश्यता के बड़े विरोधी हैं। उनका मानना है कि हिंदू धर्म अनेकता में एकता को अपने अंदर समाहित किए हुए है, यहां बिना किसी भेदभाव के सभी अनुयायियों को बराबर स्थान और सम्मान मिलना चाहिए।


मोहन भागवत का बयान

मोहन भागवत को एक व्यावहारिक नेता के रूप में देखा जाता है। उन्होंने हिन्दुत्व के विचार को आधुनिकता के साथ आगे ले जाने की बात कही है। उन्होंने बदलते समय के साथ चलने पर बल दिया है। लेकिन इसके साथ ही संगठन का आधार समृद्ध और प्राचीन भारतीय मूल्यों में दृढ़ बनाए रखा है। वे कहते हैं कि इस प्रचलित धारणा के विपरीत कि संघ पुराने विचारों और मान्यताओं से चिपका रहता है, इसने आधुनिकीकरण को स्वीकार किया है और इसके साथ ही यह देश के लोगों को सही दिशा भी दे रहा है।

        हिन्दू समाज में जातीय असमानताओं के सवाल पर भागवत ने कहा है कि अस्पृश्यता के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अनेकता में एकता के सिद्धान्त के आधार पर स्थापित हिन्दू समाज को अपने ही समुदाय के लोगों के विरुद्ध होने वाले भेदभाव के स्वाभाविक दोषों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। केवल यही नहीं अपितु इस समुदाय के लोगों को समाज में प्रचलित इस तरह के भेदभावपूर्ण रवैये को दूर करने का प्रयास भी करना चाहिए तथा इसकी शुरुआत प्रत्येक हिन्दू के घर से होनी चाहिए

हिन्दू समाज में जातीय असमानताओं के सवाल पर, मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने कहा है कि अस्पृश्यता के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अनेकता में एकता के सिद्धान्त के आधार पर स्थापित हिन्दू समाज को अपने ही समुदाय के लोगों के विरुद्ध होने वाले भेदभाव के स्वाभाविक दोषों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। केवल यही नहीं अपितु इस समुदाय के लोगों को समाज में प्रचलित इस तरह के भेदभावपूर्ण रवैये को दूर करने का प्रयास भी करना चाहिए तथा इसकी शुरुआत प्रत्येक हिन्दू के घर से होनी चाहिए।

घुसपैठ से बढ़ रहा जनसंख्या असंतुलन


संघ प्रमुख ने कहा कि घुसपैठियों के कारण जनसंख्या संतुलन बिगड़ रहा है। खास तौर पर सीमावर्ती राज्यों में आबादी असंतुलित हो गई है। इसलिए जनसंख्या नीति पर विचार होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि वर्ष 1951 से 2011 के बीच जससंख्या वृद्धि दर में भारी अंतर के कारण देश की जनसंख्या में जहां भारत में उत्पन्न मत पंथों के अनुयायियों का अनुपात 88 प्रतिशत से घटकर 83.8 प्रतिशत रह गया है। वहीं मुस्लिम जनसंख्या का अनुपात 9.8 से बढ़कर 14.23 प्रतिशत हो गया है। इसलिए घुसपैठ पर पूरी तरह से रोक लगनी चाहिए। सरकार को जनसंख्या नीति बनानी चाहिए और सभी वर्ग के लोगों के लिए लागू होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि एनआरसी से घुसपैठियों की पहचान होनी चाहिए। 

कश्मीर में बढ़ रही टारगेट किलिंग 


कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद आम लोगों को फायदा हुआ है। वहां आतंकी अपने डर के कारण टिके हुए थे, लेकिन 370 हटने के बाद वह डर खत्म हो गया है। इसलिए आतंकियों ने मनोबल गिराने के लिए फिर से 90 के दशक की टारगेट किलिंग शुरू की है, लेकिन अब लोग डरने वाले नहीं हैं। प्रशासन को चुस्ती से इसका बंदोबस्त करना पड़ेगा। 

ड्रग्स से देश को मुक्त कराने का प्रयास हो 


संघ प्रमुख ने कहा कि नई पीढ़ी में नशीले पदार्थ खाने की आदत बढ़ रही है। उच्च से निम्न स्तर तक व्यसन है। इसलिए ड्रग्स से देश को मुक्त कराने का प्रयास होना चाहिए। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के बाद ऑनलाइन शिक्षा बढ़ी है। बच्चों के हाथ में मोबाइल हैं। ऐसे में ओटीटी प्लेटफॉर्म पर नियंत्रण नहीं रह गया है। सरकार को ओ.टी.टी. के लिए सामग्री नियामक ढांचा तैयार करने के लिए प्रयास करने चाहिए।

कोरोना के खिलाफ गांवों में टोली तैयार 


भागवत ने कहा कि भारत ने कोरोना के प्रति सबसे अच्छे तरीके से प्रतिकार किया है। पहली लहर भारत में कोई खास असर नहीं दिखा पाई थी, लेकिन दूसरी ने कई लोगों को हमसे छीन लिया। अब तीसरी लहर की भी आशंका है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने गांव-गांव में युवाओं की टोली को प्रशिक्षित किया है, जिससे वे तीसरी लहर में देश की मदद कर पाएं।

राज्यों के बीच तालमेल होना जरूरी 


संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि देश में अराजकता का माहौल बनाया जा रहा है। राज्य आपस में लड़ रहे हैं, पुलिस आपस में लड़ रही है। इसलिए राज्यों के बीच तालमेल होना जरूरी है। पर्व, त्योहार पर मेलजोल बढ़ना चाहिए। 

अब तक नहीं गई टीस 


मोहन भागवत ने कहा कि  आजादी के बाद विभाजन का दर्द मिला। विभाजन की टीस अब तक नहीं गई है। हमारी पीढ़ियों को इतिहास के बारे में जानना चाहिए, जिससे आने वाली पीढ़ी अपने आगे की पीढ़ी को बता पाएं कि देश के लिए बलिदानियों की आकाश गंगा चली आ रही है। 

मोहन भागवत FAQ

मोहन भागवत जी का जन्मदिन कब है?

11 सितंबर 1950 (आयु 71 वर्ष)

मोहन भागवत की उम्र कितनी है?

आयु 71 वर्ष

संघ स्थापना की तिथि क्या है?

27 सितंबर 1925, नागपुर

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना का उद्देश्य क्या था?

1925 की विजयादशमी पर संघ स्थापना करते समय भी डा० हेडगेवार जी का उद्देश्य राष्ट्रीय स्वाधीनता ही था। संघ के स्वयंसेवकों को जो प्रतिज्ञा दिलाई जाती थी उसमें राष्ट्र की स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए तन-मन-धन पूर्वक आजन्म और प्रामाणिकता से प्रयत्नरत रहने का संकल्प होता था।

संघ का मतलब क्या होता है?

संघ संस्कृत का शब्द है- जिसका अर्थ सभा, समुदाय या संगठन है।

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