मजरूह सुल्तानपुरी जीवन परिचय | Mazrooh sultanpuri Wikipedia in hindi

मजरूह सुल्तानपुरी जीवन परिचय

मजरूह सुल्तानपुरी पहले गीतकार हैं जिन्हें 1993 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाज़ा गया। इसके अलावा उन्हें ‘दोस्ती’ फिल्म के गीत ‘चाहूंगा मैं तुझे शाम सवेरे’ के लिए फिल्म फेयर का बेस्ट लिरिसिस्ट अवार्ड दिया गया था।

सुल्तानपुर के रहने मजरूह का जन्म 1 अक्टूबर 1919 को आज़मगढ़ के निज़ामाबाद में हुआ था। मजरूह का असली नाम असरारुल हसन खान था। उनके पिता एक हेड कॉन्सटेबल थे। मजरूह के पिता नहीं चाहते थे कि वह इंग्लिश मीडियम में पढ़ें और इसिलए उन्हें मदरसे पढ़ने के लिए भेज दिया गया। हालांकि, फु़टबॉल खेलने को लेकर हुए किसी मसले की वजह वो मदरसे की पढ़ाई पूरी न कर सके।

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इसके बाद मजरूह ने हकीम बनने का सोचा और इसके लिए उन्होंने हिकमत की बाक़ायदा लखनऊ से पढ़ाई की।कुछ वक़्त प्रैक्टिस करने के बाद उन्होंने हकीमी भी छोड़ दी और बन गए शायर। लेकिन क़िस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था।

उत्तर प्रदेश के फैज़ाबाद के पास एक क़स्बे में हकीमी करने वाले मजरूह मरीज़ों की नब्ज़ देख कर दवाइयां दिया करते थे। लेकिन, जब उन्होंने इश्क़ का हकीम होने का यानी की मुकम्मल शायर होने का फैसला किया, तो जिगर मुरादाबादी के शागिर्द हो गए।

एक बार जिगर मुरादबादी को मुशायरे में शरीक़ होने के लिए मुंबई जाना था, वो अपने साथ मजरूह को भी ले गए। मुशायरे में मजरूह का कलाम लोगों को काफी पसंद आया। वहां मौजूद उस ज़माने के जाने-माने फिल्म निर्माता ए.आर. करदार भी उनके कलाम से काफी प्रभावित हुए।

इस मुशायरे के बाद मजरूह के पास फ़िल्मी गीत लिखने के ऑफर आने शुरू हो गए और वो गीतकार बनने के सफ़र पर निकल पड़े।

कहा जाता है कि जिगर मुरादाबादी न होते तो शायद मजरूह सुल्तानपुरी फ़िल्म गीतकार न होते और सिर्फ एक शायर होते।

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मजरूह ने पहली बार 1946 में रिलीज़ हुई ‘शाहजहां’ फ़िल्म के लिए गीत लिखे। इसके गाने इतने मशहूर हुए कि उन्हें कभी पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ा। उन्होंने क़रीब 350 फ़िल्मों में 2000 से ज़्यादा गाने लिखे। वैसे तो मजरूह के मशहूर गानों की फेहरिस्त काफ़ी लंबी है और उनका सबका ज़िक्र यहां मुमकिन भी नहीं है।

मजरूह के गुलशन में, ‘छोड़ दो आंचल ज़माना क्या कहेगा…, ले के पहला, पहला प्यार, भरके आंखों में खुमार…, छोड़ दो आंचल ज़माना क्या कहेगा…, पहला नशा पहला खुमार, नया प्यार है नया इंतज़ार…, क्या हुआ तेरा वादा, वो क़सम वो इरादा…, बाहों में चले आओ…,ओ मेरे दिल के चैन…, चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे…, बार बार देखो, हज़ार बार देखो.., रात कली एक ख़्वाब में आई…, हाल कैसा है जनाब का…, आज मैं ऊपर, ज़माना है नीचे…, जैसे नायाब गीत है।

शोहरत की बुलंदियों को छूने वाले मजरूह सुल्तानपुरी को बुरे दौर से भी गुज़रना भी पड़ा। मुंबई में रहते हुए एक वक़्त ऐसा भी आया जब उन्हें आर्थिक तंगी के कारण अपना घर और कारें बेचनी पड़ीं। हिंदी सिनेमा को बेशक़ीमत गीतों से नवाज़ने वाले मजरूह ने आखिर इस दुनिया को 24 मई 2000 को अलविदा कह दिया।