महादेवी वर्मा कविता | Mahadevi verma poems in hindi

mahadevi verma ki kavita

पूछता क्यों शेष कितनी रात?

पूछता क्यों शेष कितनी रात?

छू नखों की क्रांति चिर संकेत पर जिनके जला तू

स्निग्ध सुधि जिनकी लिये कज्जल-दिशा में हँस चला तू

परिधि बन घेरे तुझे, वे उँगलियाँ अवदात!

झर गये ख्रद्योत सारे,

तिमिर-वात्याचक्र में सब पिस गये अनमोल तारे;

बुझ गई पवि के हृदय में काँपकर विद्युत-शिखा रे!

साथ तेरा चाहती एकाकिनी बरसात!

व्यंग्यमय है क्षितिज-घेरा

प्रश्नमय हर क्षण निठुर पूछता सा परिचय बसेरा;

आज उत्तर हो सभी का ज्वालवाही श्वास तेरा!

छीजता है इधर तू, उस ओर बढ़ता प्रात!

प्रणय लौ की आरती ले

धूम लेखा स्वर्ण-अक्षत नील-कुमकुम वारती ले

मूक प्राणों में व्यथा की स्नेह-उज्जवल भारती ले

मिल, अरे बढ़ रहे यदि प्रलय झंझावात।

कौन भय की बात।

पूछता क्यों कितनी रात?

Mahadevi Verma poem in hindi

मैं नीर भरी दुख की बदली |

मैं नीर भरी दुख की बदली!

स्पन्दन में चिर निस्पन्द बसा

क्रन्दन में आहत विश्व हँसा

नयनों में दीपक से जलते,

पलकों में निर्झरिणी मचली!

मेरा पग-पग संगीत भरा

श्वासों से स्वप्न-पराग झरा

नभ के नव रंग बुनते दुकूल

छाया में मलय-बयार पली।

मैं क्षितिज-भृकुटि पर घिर धूमिल

चिन्ता का भार बनी अविरल

रज-कण पर जल-कण हो बरसी,

नव जीवन-अंकुर बन निकली!

पथ को न मलिन करता आना

पथ-चिह्न न दे जाता जाना;

सुधि मेरे आंगन की जग में

सुख की सिहरन हो अन्त खिली!

विस्तृत नभ का कोई कोना

मेरा न कभी अपना होना,

परिचय इतना, इतिहास यही-

उमड़ी कल थी, मिट आज चली!

mahadevi verma poems

स्वप्न से किसने जगाया?

स्वप्न से किसने जगाया?

मैं सुरभि हूं।

छोड़ कोमल फूल का घर,

ढूंढ़ती हूं निर्झर।

पूछती हूं नभ धरा से-

क्या नहीं ऋतुराज आया?

मैं ऋतुओं में न्यारा वसंत,

मैं अग-जग का प्यारा वसंत।

मेरी पगध्वनी सुन जग जागा,

कण-कण ने छवि मधुरस मांगा।

नव जीवन का संगीत बहा,

पुलकों से भर आया दिगंत।

मेरी स्वप्नों की निधि अनंत,

मैं ऋतुओं में न्यारा वसंत।

कौन तुम मेरे हृदय में

कौन तुम मेरे हृदय में?

कौन मेरी कसक में नित

मधुरता भरता अलक्षित?

कौन प्यासे लोचनों में

घुमड़ घिर झरता अपरिचित?

स्वर्ण-स्वप्नों का चितेरा

नींद के सूने निलय में!

कौन तुम मेरे हृदय में?

अनुसरण नि:श्वास मेरे

कर रहे किसका निरन्तर?

चूमने पदचिन्ह किसके

लौटते यह श्वास फिर फिर

कौन बन्दी कर मुझे अब

बँध गया अपनी विजय में?

कौन तुम मेरे हृदय में?

एक करूण अभाव में चिर-

तृप्ति का संसार संचित

एक लघु क्षण दे रहा

निर्वाण के वरदान शत शत,

पा लिया मैंने किसे इस

वेदना के मधुर क्रय में?

कौन तुम मेरे हृदय में?

गूँजता उर में न जाने

दूर के संगीत सा क्या?

आज खो निज को मुझे

खोया मिला, विपरीत सा क्या

क्या नहा आई विरह-निशि

मिलन-मधु-दिन के उदय में?

कौन तुम मेरे हृदय में?

तिमिर-पारावार में

आलोक-प्रतिमा है अकम्पित

आज ज्वाला से बरसता

क्यों मधुर घनसार सुरभित?

सुन रहीं हूँ एक ही

झंकार जीवन में, प्रलय में?

कौन तुम मेरे हृदय में?

मूक सुख दुख कर रहे

मेरा नया श्रृंगार सा क्या?

झूम गर्वित स्वर्ग देता-

नत धरा को प्यार सा क्या?

आज पुलकित सृष्टि क्या

करने चली अभिसार लय में

कौन तुम मेरे हृदय में?

Mahadevi Verma poem in hindi

मैं अनंत पथ में लिखती जो | mahadevi verma kavita

मै अनंत पथ में लिखती जो

सस्मित सपनों की बाते

उनको कभी न धो पायेंगी

अपने आँसू से रातें!

उड़ उड़ कर जो धूल करेगी

मेघों का नभ में अभिषेक

अमिट रहेगी उसके अंचल-

में मेरी पीड़ा की रेख!

तारों में प्रतिबिम्बित हो

मुस्कायेंगी अनंत आँखें,

हो कर सीमाहीन, शून्य में

मँडरायेगी अभिलाषें!

वीणा होगी मूक बजाने-

वाला होगा अंतर्धान,

विस्मृति के चरणों पर आ कर

लौटेंगे सौ सौ निर्वाण!

जब असीम से हो जायेगा

मेरी लघु सीमा का मेल,

देखोगे तुम देव! अमरता

खेलेगी मिटने का खेल!

mahadevi verma short poems in hindi

| जब यह दीप थके तब आना।

यह चंचल सपने भोले है,
दृग-जल पर पाले मैने, मृदु
पलकों पर तोले हैं;
दे सौरभ के पंख इन्हें सब नयनों में पहुँचाना!

साधें करुणा-अंक ढली है,
सान्ध्य गगन-सी रंगमयी पर
पावस की सजला बदली है;
विद्युत के दे चरण इन्हें उर-उर की राह बताना!

यह उड़ते क्षण पुलक-भरे है,
सुधि से सुरभित स्नेह-धुले,
ज्वाला के चुम्बन से निखरे है;
दे तारो के प्राण इन्ही से सूने श्वास बसाना!

यह स्पन्दन है अंक-व्यथा के
चिर उज्ज्वल अक्षर जीवन की
बिखरी विस्मृत क्षार-कथा के;
कण का चल इतिहास इन्हीं से लिख-लिख अजर बनाना!

लौ ने वर्ती को जाना है
वर्ती ने यह स्नेह, स्नेह ने
रज का अंचल पहचाना है;
चिर बन्धन में बाँध इन्हें धुलने का वर दे जाना!

पूछता क्यों शेष कितनी रात?
छू नखों की क्रांति चिर संकेत पर जिनके जला तू
स्निग्ध सुधि जिनकी लिये कज्जल-दिशा में हँस चला तू
परिधि बन घेरे तुझे, वे उँगलियाँ अवदात!

झर गये ख्रद्योत सारे,
तिमिर-वात्याचक्र में सब पिस गये अनमोल तारे;
बुझ गई पवि के हृदय में काँपकर विद्युत-शिखा रे!
साथ तेरा चाहती एकाकिनी बरसात!

व्यंग्यमय है क्षितिज-घेरा
प्रश्नमय हर क्षण निठुर पूछता सा परिचय बसेरा;
आज उत्तर हो सभी का ज्वालवाही श्वास तेरा!
छीजता है इधर तू, उस ओर बढता प्रात!

प्रणय लौ की आरती ले
धूम लेखा स्वर्ण-अक्षत नील-कुमकुम वारती ले
मूक प्राणों में व्यथा की स्नेह-उज्जवल भारती ले
मिल, अरे बढ़ रहे यदि प्रलय झंझावात।

कौन भय की बात।
पूछता क्यों कितनी रात?

mahadevi verma poems in hindi on nature

यह मन्दिर का दीप इसे नीरव जलने दो
रजत शंख घड़ियाल स्वर्ण वंशी-वीणा-स्वर,
गये आरती वेला को शत-शत लय से भर,
जब था कल कंठो का मेला,
विहंसे उपल तिमिर था खेला,
अब मन्दिर में इष्ट अकेला,
इसे अजिर का शून्य गलाने को गलने दो!

चरणों से चिन्हित अलिन्द की भूमि सुनहली,
प्रणत शिरों के अंक लिये चन्दन की दहली,
झर सुमन बिखरे अक्षत सित,
धूप-अर्घ्य नैवेदय अपरिमित
तम में सब होंगे अन्तर्हित,
सबकी अर्चित कथा इसी लौ में पलने दो!

पल के मनके फेर पुजारी विश्व सो गया,
प्रतिध्वनि का इतिहास प्रस्तरों बीच खो गया,
सांसों की समाधि सा जीवन,
मसि-सागर का पंथ गया बन
रुका मुखर कण-कण स्पंदन,
इस ज्वाला में प्राण-रूप फिर से ढलने दो!

झंझा है दिग्भ्रान्त रात की मूर्छा गहरी
आज पुजारी बने, ज्योति का यह लघु प्रहरी,
जब तक लौटे दिन की हलचल,
तब तक यह जागेगा प्रतिपल,
रेखाओं में भर आभा-जल
दूत सांझ का इसे प्रभाती तक चलने दो!

जो तुम आ जाते एक बार

कितनी करूणा कितने संदेश
पथ में बिछ जाते बन पराग
गाता प्राणों का तार तार
अनुराग भरा उन्माद राग

आँसू लेते वे पथ पखार
जो तुम आ जाते एक बार

हँस उठते पल में आर्द्र नयन
धुल जाता होठों से विषाद
छा जाता जीवन में बसंत
लुट जाता चिर संचित विराग

आँखें देतीं सर्वस्व वार
जो तुम आ जाते एक बार

Mahadevi Verma poems in hindi

कौन तुम मेरे हृदय में ? |



कौन मेरी कसक में नित
मधुरता भरता अलक्षित?
कौन प्यासे लोचनों में
घुमड़ घिर झरता अपरिचित?

स्वर्ण-स्वप्नों का चितेरा
नींद के सूने निलय में!
कौन तुम मेरे हृदय में?

अनुसरण निश्वास मेरे
कर रहे किसका निरन्तर?
चूमने पदचिन्ह किसके
लौटते यह श्वास फिर फिर

कौन बन्दी कर मुझे अब
बँध गया अपनी विजय में?
कौन तुम मेरे हृदय में?

एक करूण अभाव में चिर-
तृप्ति का संसार संचित
एक लघु क्षण दे रहा
निर्वाण के वरदान शत शत,

पा लिया मैंने किसे इस
वेदना के मधुर क्रय में?
कौन तुम मेरे हृदय में?

गूँजता उर में न जाने
दूर के संगीत सा क्या?
आज खो निज को मुझे
खोया मिला, विपरीत सा क्या

क्या नहा आई विरह-निशि
मिलन-मधु-दिन के उदय में?
कौन तुम मेरे हृदय में?

तिमिर-पारावार में
आलोक-प्रतिमा है अकम्पित
आज ज्वाला से बरसता
क्यों मधुर घनसार सुरभित?

सुन रहीं हूँ एक ही
झंकार जीवन में, प्रलय में?
कौन तुम मेरे हृदय में?

मूक सुख दुख कर रहे
मेरा नया श्रृंगार सा क्या?
झूम गर्वित स्वर्ग देता-
नत धरा को प्यार सा क्या?

आज पुलकित सृष्टि क्या
करने चली अभिसार लय में
कौन तुम मेरे हृदय में?