गोपालदास नीरज या नीरज के रूप में लोकप्रिय एक भारतीय कवि और हिंदी साहित्य के लेखक थे। उनका जन्म 4 जनवरी, 1925 को भारत के उत्तर प्रदेश में इटावा जिले के में हुआ था। उन्होंने “नीरज” नाम से लिखा था।
उन्हें 1991 में पद्मश्री और 2007 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
लेखन के अलावा अध्यापन किया और धर्म समाज कॉलेज, अलीगढ़ में हिंदी साहित्य के प्रोफेसर थे।2012 के आसपास, नीरज, मंगलायतन विश्वविद्यालय, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश के चांसलर थे।
हिंदी फिल्मों में नीरज द्वारा लिखी गई कई कविताओं और गीतों का उपयोग किया गया है। उन्होंने कई हिंदी फिल्मों के लिए गीत लिखे और हिंदी और उर्दू दोनों में निपुण थे।
Neeraj Works In Bollywood | फिल्मों में नीरज द्वारा लिखी कविताओं |
फ़िल्मी गाने | फिल्म |
Sapne jhare phool se | Nai Umar Ki Nai Fasal |
Likhe jo khat tujhe | Kanyadaan |
Kaal ka paahiya ghoome bhaiya | Chanda Aur Bijli |
Ae bhai zara dekh ke chalo | Mera Naam Joker |
Chham chham baaje re paayelia | Jaane Anjaane |
Aap yahan aaye kis liye | Kal Aaj Aur Kal |
Phoolon ke rang se | Prem Pujaari |
Rangila re tere rang me | |
Khilte hai gul yahan | Sharmilee |
Megha chhaye aadhi raat | |
Aaj madhosh hua jaaye re | |
Kaise kahe hum | |
Dil aaj shayar hai | Gambler |
Mera man tera pyaasa | |
Re man sur ma ga | Lal Paththar |
Jeevan ki baagiyan | Tere Mere Sapne |
Jaise Radha ne maal japi | |
Jhoom keg aa yuhn aaj mere dil | Patanga |
Tum kitni khubsoorat ho | Jangal Mein Mangal |
फिल्म गीतकार के रूप में उनका करियर तब समाप्त हुआ जब वह फिल्म संगीत के कुछ लोगों विशेष रूप से संगीत जोड़ी शंकर-जयकिशन और एस. डी. बर्मन की मृत्यु से उदास हो गए। वह डेप्रेससन यानी मानसिक अवसाद में चले गए थे.
19 जुलाई 2018 को नई दिल्ली में नीरज का 93 वर्ष की आयु में निधन हो गया।
किन उनके रचना संसार का फलक इतना बड़ा है कि अपने चाहने वालों के दिलों में वे आजीवन जिंदा रहेंगे। पढ़िए उनकी कुछ बेहतरीन कविताएं और गजलें।
Haar Naa Apni Manunga mai Neeraj
हार न अपनी मानूँगा मैं !
चाहे पथ में शूल बिछाओ
चाहे ज्वालामुखी बसाओ,
किन्तु मुझे जब जाना ही है —
तलवारों की धारों पर भी, हँस कर पैर बढ़ा लूँगा मैं !
मन में मरू-सी प्यास जगाओ,
रस की बूँद नहीं बरसाओ,
किन्तु मुझे जब जीना ही है —
मसल-मसल कर उर के छाले, अपनी प्यास बुझा लूँगा मैं !
हार न अपनी मानूंगा मैं !
चाहे चिर गायन सो जाए,
और ह्रदय मुरदा हो जाए,
किन्तु मुझे अब जीना ही है —
बैठ चिता की छाती पर भी, मादक गीत सुना लूँगा मैं !
हार न अपनी मानूंगा मैं !
Mera Naam Liya Jayega Neeraj Poem
मेरा नाम लिया जाएगा
आँसू जब सम्मानित होंगे, मुझको याद किया जाएगा
जहाँ प्रेम का चर्चा होगा, मेरा नाम लिया जाएगा
मान-पत्र मैं नहीं लिख सका, राजभवन के सम्मानों का
मैं तो आशिक़ रहा जन्म से, सुंदरता के दीवानों का
लेकिन था मालूम नहीं ये, केवल इस ग़लती के कारण
सारी उम्र भटकने वाला, मुझको शाप दिया जाएगा
खिलने को तैयार नहीं थी, तुलसी भी जिनके आँगन में
मैंने भर-भर दिए सितारे, उनके मटमैले दामन में
पीड़ा के संग रास रचाया, आँख भरी तो झूम के गाया
जैसे मैं जी लिया किसी से, क्या इस तरह जिया जाएगा
काजल और कटाक्षों पर तो, रीझ रही थी दुनिया सारी
मैंने किंतु बरसने वाली, आँखों की आरती उतारी
रंग उड़ गए सब सतरंगी, तार-तार हर साँस हो गई
फटा हुआ यह कुर्ता अब तो, ज़्यादा नहीं सिया जाएगा
जब भी कोई सपना टूटा, मेरी आँख वहाँ बरसी है
तड़पा हूँ मैं जब भी कोई, मछली पानी को तरसी है
गीत दर्द का पहला बेटा, दुख है उसका खेल-खिलौना
कविता तब मीरा होगी जब, हँसकर ज़हर पिया जाएगा
– गोपालदास “नीरज”
Neeraj Poem Maanav Kavi ban jata hai
मानव कवि बन जाता है
तब मानव कवि बन जाता है!
जब उसको संसार रुलाता,
वह अपनों के समीप जाता,
पर जब वे भी ठुकरा देते
वह निज मन के सम्मुख आता,
पर उसकी दुर्बलता पर जब मन भी उसका मुस्काता है!
तब मानव कवि बन जाता है!
– गोपालदास “नीरज”
Neeraj Poem Karwan Gujar gaya
कारवां गुज़र गया
स्वप्न झरे फूल से,
मीत चुभे शूल से,
लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से,
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे!
नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई,
पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई,
पात-पात झर गये कि शाख़-शाख़ जल गई,
चाह तो निकल सकी न, पर उमर निकल गई,
गीत अश्क़ बन गए,
छंद हो दफ़न गए,
साथ के सभी दिऐ धुआँ-धुआँ पहन गये,
और हम झुके-झुके,
मोड़ पर रुके-रुके
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे।
क्या शबाब था कि फूल-फूल प्यार कर उठा,
क्या सुरूप था कि देख आइना मचल उठा
इस तरफ जमीन और आसमां उधर उठा,
थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा,
एक दिन मगर यहाँ,
ऐसी कुछ हवा चली,
लुट गयी कली-कली कि घुट गयी गली-गली,
और हम लुटे-लुटे,
वक्त से पिटे-पिटे,
साँस की शराब का खुमार देखते रहे
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे।
हाथ थे मिले कि जुल्फ चाँद की सँवार दूँ,
होंठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूँ,
दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूँ,
और साँस यूँ कि स्वर्ग भूमी पर उतार दूँ,
हो सका न कुछ मगर,
शाम बन गई सहर,
वह उठी लहर कि दह गये किले बिखर-बिखर,
और हम डरे-डरे,
नीर नयन में भरे,
ओढ़कर कफ़न, पड़े मज़ार देखते रहे
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे!
माँग भर चली कि एक, जब नई-नई किरन,
ढोलकें धुमुक उठीं, ठुमक उठे चरण-चरण,
शोर मच गया कि लो चली दुल्हन, चली दुल्हन,
गाँव सब उमड़ पड़ा, बहक उठे नयन-नयन,
पर तभी ज़हर भरी,
ग़ाज एक वह गिरी,
पुंछ गया सिंदूर तार-तार हुई चूनरी,
और हम अजान से,
दूर के मकान से,
पालकी लिये हुए कहार देखते रहे।
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे।
– गोपालदास “नीरज”
Neeraj Kavita Chip chip ashru bahaane walon
छिप-छिप अश्रु बहाने वालों
छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है।
सपना क्या है, नयन सेज पर
सोया हुआ आँख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है।
माला बिखर गयी तो क्या है
खुद ही हल हो गयी समस्या
आँसू गर नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुई तपस्या
रूठे दिवस मनाने वालों, फटी कमीज़ सिलाने वालों
कुछ दीपों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता है।
खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
केवल जिल्द बदलती पोथी
जैसे रात उतार चांदनी
पहने सुबह धूप की धोती
वस्त्र बदलकर आने वालों! चाल बदलकर जाने वालों!
चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है।
लाखों बार गगरियाँ फूटीं,
शिकन न आई पनघट पर,
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं,
चहल-पहल वो ही है तट पर,
तम की उमर बढ़ाने वालों! लौ की आयु घटाने वालों!
लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।
लूट लिया माली ने उपवन,
लुटी न लेकिन गन्ध फूल की,
तूफानों तक ने छेड़ा पर,
खिड़की बन्द न हुई धूल की,
नफरत गले लगाने वालों! सब पर धूल उड़ाने वालों!
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है!
– गोपालदास “नीरज”
Gopal Das Neeeraj Poem Madhur tum itna hi kardo
मधुर तुम इतना ही कर दो !
यदि यह कहते हो मैं गाऊँ,
जलकर भी आनन्द मनाऊँ
इस मिट्टी के पँजर में मत छोटा-सा उर दो !
मधुर तुम इतना ही कर दो!
तेरी मधुशाला के भीतर,
मैं ही ख़ाली प्याला लेकर,
बैठा हूँ लज्जा से दबकर,
मैं पी लूँ, मधु न सही, इसमें विष ही भर दो !
मधुर, तुम इतना ही कर दो !
है बहुत अंधियार अब सूरज निकलना चाहिये
है बहुत अंधियार अब सूरज निकलना चाहिए
जिस तरह से भी हो ये मौसम बदलना चाहिए
रोज़ जो चेहरे बदलते है लिबासों की तरह
अब जनाज़ा ज़ोर से उनका निकलना चाहिए
अब भी कुछ लोगो ने बेची है न अपनी आत्मा
ये पतन का सिलसिला कुछ और चलना चाहिए
फूल बन कर जो जिया वो यहाँ मसला गया
जीस्त को फ़ौलाद के साँचे में ढलना चाहिए
छिनता हो जब तुम्हारा हक़ कोई उस वक़्त तो
आँख से आँसू नहीं शोला निकलना चाहिए
दिल जवां, सपने जवाँ, मौसम जवाँ, शब् भी जवाँ
तुझको मुझसे इस समय सूने में मिलना चाहिए
– गोपालदास “नीरज”
Neeraj poem Dard Diya hai
दर्द दिया है / गोपालदास “नीरज”
दर्द दिया है, अश्रु स्नेह है, बाती बैरिन श्वास है,
जल-जलकर बुझ जाऊँ, मेरा बस इतना इतिहास है !
मैं ज्वाला का ज्योति-काव्य
चिनगारी जिसकी भाषा,
किसी निठुर की एक फूँक का
हूँ बस खेल-तमाशा
पग-तल लेटी निशा, भाल पर
बैठी ऊषा गोरी,
एक जलन से बाँध रखी है
साँझ-सुबह की डोरी
hum tumhe marne na denge
हम तुम्हें मरने न देंगे / गोपालदास “नीरज”
सोये चाँद-सितारे, भू-नभ, दिशि-दिशि स्वप्न-मगन है
पी-पीकर निज आग जग रही केवल मेरी प्यास है !
जल-जलकर बुझ जाऊँ, मेरा बस इतना इतिहास है !!
धूल कितने रंग बदले डोर और पतंग बदले
जब तलक जिंदा कलम है हम तुम्हें मरने न देंगे
खो दिया हमने तुम्हें तो पास अपने क्या रहेगा
कौन फिर बारूद से सन्देश चन्दन का कहेगा
मृत्यु तो नूतन जनम है हम तुम्हें मरने न देंगे।
तुम गए जब से न सोई एक पल गंगा तुम्हारी
बाग में निकली न फिर हस्ते गुलाबों की सवारी
हर किसी की आँख नम है हम तुम्हें मरने न देंगे
तुम बताते थे कि अमृत से बड़ा है हर पसीना
आँसुओं से ज्यादा कीमती है न कोई नगीना
याद हरदम वह कसम है हम तुम्हें मरने न देंगे
तुम नहीं थे व्यक्ति तुम आजादियों के कारवाँ थे
अमन के तुम रहनुमा थे प्यार के तुम पासवाँ थे
यह हकीकत है न भ्रम है हम तुम्हें मरने न देंगे
तुम लड़कपन के लड़कपन तुम जवानो की जवानी
सिर्फ दिल्ली ही न हर दिल था तुम्हारी राजधानी
प्यार वह अब भी न कम है हम तुम्हें मरने न देंगे
बोलते थे तुम न तुममें बोलता था देश सारा
बस नहीं इतिहास ही तुमने हवाओं को सवाँरा
आज फिर धरती नरम है हम तुम्हें मरने न देंगे